बचपन खो गए : एक मार्मिक शब्द चित्र
Diary of dreams बाल श्रम के विरुद्ध आवाज उठाती ज्वलंत कविता प्रस्तुत करते है :-
बचपन खो गए मोरपंख-से बंद किताबों में
श्रम के काँटे यूँ ही चुभ गए कोमल हाथों में
किसी नयन के मोती अश्रु बन कर बिकें बाजारों मेंबचपन खो गए मोरपंख-से बंद किताबों में
सिसक रहीं है नन्ही कलियाँ इन काले हाथों में
याद आता है माँ का आँचल द्रवित नजारों में
बचपन खो गए मोरपंख-से बंद किताबों में
अब कड़कानी होगी बिजली इन काली घटाओं में
नाचेगा तब मन-मयूर हो मस्त फिजाओं में
बचपन खो गए मोरपंख-से बंद किताबों में
द्वारा-
अम्बुज उपाध्याय
Comments
Post a Comment