वर्षा की बदली हूँ मैं
कविता कवि की कल्पना का परिणाम होती है| कवि ह्रदय कल्पना का और कल्पना कविता की जन्मस्थली होती है| अतः कविता ह्रदय की गहराई में उपजे भावों की सुन्दर मोती है जिसका मनोहारी चित्रण कुछ इस प्रकार किया गया है:-
मैं शब्द को मणिक बनाऊँ
सृष्टि की प्यास बुझाऊँ,
मुझे देख के मन हर्षेगा
वर्षा की बदली हूँ मैं |
मैं पलक पर शब्द झुलाऊँ
और सोंधी इत्र उड़ाऊँ,
मुझे देख के मन बोलेगा
सावन की कजरी हूँ मैं |
मैं शब्द-जाल भी बिछाऊँ
और हृदय-सितार बजाऊँ,
मुझे देख के वो समझेगा
एक अनपढ़ पगली हूँ मैं |
मैं शब्द की गंग बहाऊँ
और ह्रदय के कमल खिलाऊँ,
मुझे देख के दिल उछलेगा
सुनहरी मछली हूँ मैं |
मैं अश्रु से झील बनाऊँ
और शब्द की नाव चलाऊँ,
मुझे देख के तपन बुझेगा
एक अधजल गगरी हूँ मैं |
द्वारा:-
अम्बुज उपाध्याय
वर्षा की बदली हूँ मैं |
मैं शब्द को मणिक बनाऊँ
सृष्टि की प्यास बुझाऊँ,
मुझे देख के मन हर्षेगा
वर्षा की बदली हूँ मैं |
मैं पलक पर शब्द झुलाऊँ
और सोंधी इत्र उड़ाऊँ,
मुझे देख के मन बोलेगा
सावन की कजरी हूँ मैं |
मैं शब्द-जाल भी बिछाऊँ
और हृदय-सितार बजाऊँ,
मुझे देख के वो समझेगा
एक अनपढ़ पगली हूँ मैं |
मैं शब्द की गंग बहाऊँ
और ह्रदय के कमल खिलाऊँ,
मुझे देख के दिल उछलेगा
सुनहरी मछली हूँ मैं |
मैं अश्रु से झील बनाऊँ
और शब्द की नाव चलाऊँ,
मुझे देख के तपन बुझेगा
एक अधजल गगरी हूँ मैं |
द्वारा:-
अम्बुज उपाध्याय
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